गाओकोर प्रथा
21वीं सदी के इस मॉडर्न समय मे जहां दुनिया हर क्षेत्र मे इतना आगे है ।जहां छुआ -छुत, ऊंच-नीच का कोई मान्यता नही रह गया है ।जहां लड़की और लड़का में कोई भेद नही रह गया है वही" गाओकोर"जैसे प्रथाएं आज भी चल रही है।
गाओकोरमहाराष्ट्र का एक जिला( गढ़चिरौली) में महिलाओं के मासिक धर्म के दिनों में उंन्हे गांव से कोसों दूर एक झोपड़ी"गाओकोर" में रहने के लिए भेज दिया जाता है ।
उस गांव की मान्यता है कि महिलाओं के मासिक धर्म के समय मे वो अछुत हो जाती है। इसलिए इस समय महिलाओं को घर मे नही रहना चाहिए । ये उनके धर्म के विरुद्घ माना जाता है।
अब लोग इन सभी बातों को बिल्कुल नहीं मानते हैं अब के समय में महिलाए पीरियड्स के दौरान अपने घर में, अपने परिवार वालों के साथ आराम से रहती हैं और अपना सारा काम उन दिनों मे खुद ही करती है ।वहीं "गोओकोर" जैसी प्रथाओ के बारे में सुन के आश्चर्य होता है।
गोओकोर प्रथा की शुरुआत उस गांव के कुछ स्थानीय समुदाय के लोगों ने किया था ।सदियों से इस प्रथा को आदिवासी महिलाओं पर जबरन लागु किया जाता है,और जबरन उन्हें मनवाया भी जाता है और मासिक समय के 4 से 5 दिनों के लिए या जब तक उनका पीरियड्स खत्म नहीं हो जाता तब तक उसे गाओकोर में ही रहना परता है ।
गढचिरौली की आदिवासी महिलाओं को इस प्रथा से बचाना आवश्यक है ।
क्योंकि अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो गढचिरौली की महिलाएं यूं ही मरती रहेंगे। उन्हें पीरियड्स के समय पैड जैसी सुविधाएं नही दी जाती हैं ,उनमे पेट दर्द ,बदन दर्द ,रक्त का ज्यादा बहना। इनसे उनमे कई प्रकार के शारीरिक बीमारी हो जाती है जिनसे उनकी कई दफा मृत्यु भी हो जाती है।
इन महिलाओं के मानवाधिकार का हनन किया जा रहा है। जिसके तहत NHRC (national human rights commission)के द्वारा याचिका भी दायर किया गया है पर इस पर आज तक कोई सुनवाई नहीं हो पाई है इसे जल्द से जल्द रोकना बहुत जरूरी है क्योंकि यह एक अपराध है।
मेरे नज़रिये में ये सरासर गलत है ,किसी भी महिलाओं के लिए ।इस तरह तो कोई जानवर के साथ भी व्यवहार नहीं होता होगा ।जिस तरीके से इन महिलाओं पर हो रहा है ।महिलाओं में जागरूकता की कमी ,गरीबी ,अशिक्षा ये सब इनकी वजह है।भारत सरकार को ऐसे सभी मानवी अपराध की जांच करनी चाहिए और इसके लिए ठोस कदम जल्द से जल्द उठाना चाहिए।
Very good 👍
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